Sunday 28 May 2017

चौधरी चरण सिंह

चौधरी चरण सिंह (जन्म: 23 दिसम्बर, 1902 मेरठ - मृत्यु- 29 मई, 1987) भारत के पाँचवें प्रधानमंत्री थे। चरण सिंह किसानों की आवाज़ बुलन्द करने वाले प्रखर नेता माने जाते थे। चौधरी चरण सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक रहा। यह समाजवादी पार्टी तथा कांग्रेस (ओ) के सहयोग से देश के प्रधानमंत्री बने। इन्हें 'काँग्रेस इं' और सी. पी. आई. ने बाहर से समर्थन दिया, लेकिन वे इनकी सरकार में सम्मिलित नहीं हुए। इसके अतिरिक्त चौधरी चरण सिंह भारत के गृहमंत्री (कार्यकाल- 24 मार्च 1977 – 1 जुलाई  1978),  उपप्रधानमंत्री  (कार्यकाल- 24 मार्च 1977 – 28 जुलाई 1979) और दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे।
want to earn money join neobux click here to join
join donkeymails to earn money click here

join clixsense to earn upto 10$ per day click here
आरम्भिक जीवन
चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के नूरपुर ग्राम में एक मध्यम वर्गीय कृषक परिवार में हुआ था। इनका परिवार जाट पृष्ठभूमि वाला था। इनके पुरखे महाराजा नाहर सिंह ने 1887 की प्रथम क्रान्ति में विशेष योगदान दिया था। महाराजा नाहर सिंह वल्लभगढ़ के निवासी थे, जो कि वर्तमान में हरियाणा में आता है। महाराजा नाहर सिंह को दिल्ली के चाँदनी चौक में ब्रिटिश हुकूमत ने फ़ाँसी पर चढ़ा दिया था। तब अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ क्रान्ति की ज्वाला को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए महाराजा नाहर सिंह के समर्थक और चौधरी चरण सिंह के दादा जी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर ज़िले के पूर्ववर्ती क्षेत्र में निष्क्रमण कर गए।
want to earn money join neobux click here to join
join donkeymails to earn money click here

join clixsense to earn upto 10$ per day click here
विद्यार्थी जीवन
चौधरी चरण सिंह को परिवार में शैक्षणिक वातावरण प्राप्त हुआ था। स्वयं इनका भी शिक्षा के प्रति अतिरिक्त रुझान रहा। चौधरी चरण सिंह के पिता चौधरी मीर सिंह चाहते थे कि उनका पुत्र शिक्षित होकर देश सेवा का कार्य करे। चौधरी चरण सिंह की प्राथमिक शिक्षा नूरपुर ग्राम में ही पूर्ण हुई, जबकि मैट्रिकुलेशन के लिए इन्हें मेरठ के सरकारी उच्च विद्यालय में भेज दिया गया। 1923 में 21 वर्ष की आयु में इन्होंने विज्ञान विषय में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली। दो वर्ष के पश्चात 1925 में चौधरी चरण सिंह ने कला स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर विधि की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्होंने गाज़ियाबाद में वक़ालत करना आरम्भ कर दिया।
want to earn money join neobux click here to join
join donkeymails to earn money click here

join clixsense to earn upto 10$ per day click here
विवाह
1929 में चौधरी चरण सिंह मेरठ आ गए। मेरठ आने के बाद इनकी शादी जाट परिवार की बेटी गायत्री के साथ सम्पन्न हुई। गायत्री देवी का परिवार रोहतक ज़िले के 'गढ़ी ग्राम' में रहता था। यह वह समय था जब देश में स्वाधीनता संग्राम तीव्र गति पकड़ चुका था। चरण सिंह स्वयं को देश की पुकार से अलग नहीं रख पाए। इन्होंने वक़ालत को त्यागकर आन्दोलन में भाग लेने का मन बना लिया। उस समय कांग्रेस एक बहुत बड़ी पार्टी थी। चरण सिंह भी कांग्रेस के सदस्य बन गए। कांग्रेस में उनकी छवि एक कुशल कार्यकर्ता के रूप में स्थापित हुई। 1937 के विधानसभा चुनाव में इन्हें सफलता प्राप्त हुई और यह छत्रवाली विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए।
want to earn money join neobux click here to join
join donkeymails to earn money click here

join clixsense to earn upto 10$ per day click here
राजनीतिक जीवन
एक बार राजनीति से जुड़ने के बाद चौधरी चरण सिंह का इससे कभी मोहभंग नहीं हुआ। उन दिनों सुशिक्षित लोगों की कमी नहीं थी, जो देश सेवा के लिए कांग्रेस से जुड़ रहे थे। उन्होंने छत्रवाली विधानसभा सीट से 9 वर्ष (अर्थात् 1946) तक क्षेत्रीय जनता का कुशलतापूर्वक प्रतिनिधित्व किया। देश की आज़ादी के बाद वह राष्ट्रीय स्तर के नेता तो नहीं बन सके, लेकिन राज्य विधानसभा में उनका प्रभाव स्पष्ट महसूस किया जाता था। आज़ादी के बाद 19521962 और 1967 में हुए चुनावों में चौधरी चरण सिंह राज्य विधानसभा के लिए पुन: चुने गए। इनकी योग्यता से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भी प्रभावित रहा। इसके फलस्वरूप पंडित गोविन्द वल्लभ पंत की सरकार में इन्हें 'पार्लियामेंटरी सेक्रेटरीशिप' भी प्राप्त हुई। संसदीय सचिव की भूमिका में इन्होंने राजस्व, न्याय, सूचना, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य आदि विभागों के दायित्वों का निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ किया। चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक भविष्य 1951 में बनना आरम्भ हो गया था, जब इन्हें उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री का पद प्राप्त हुआ। उन्होंने न्याय एवं सूचना विभाग सम्भाला। 1952 में डॉक्टर सम्पूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग का दायित्व मिला। वह ज़मीन से जुड़े नेता थे और कृषि विभाग उन्हें विशिष्ट रूप से पसंद था। चरण सिंह स्वभाव से भी कृषक थे। वह कृषक हितों के लिए अनवरत प्रयास करते रहे। 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्रालय दिया गया। वह उत्तर प्रदेश की जनता के मध्य अत्यन्त लोकप्रिय थे। इसीलिए प्रदेश सरकार में योग्यता एवं अनुभव के कारण उन्हें ऊँचा मुक़ाम हासिल हुआ।
want to earn money join neobux click here to join
join donkeymails to earn money click here

join clixsense to earn upto 10$ per day click here
सामाजिक कार्यकर्ता
उत्तर प्रदेश के किसान चरण सिंह को अपना मसीहा मानने लगे थे। उन्होंने कृषकों के कल्याण के लिए काफ़ी कार्य किए। समस्त उत्तर प्रदेश में भ्रमण करते हुए कृषकों की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाक़ों में कृषि मुख्य व्यवसाय था। कृषकों में सम्मान होने के कारण इन्हें किसी भी चुनाव में हार का मुख नहीं देखना पड़ा। उस समय तक उत्तर प्रदेश की सिंचाई व्यवस्था में सुधार की बहुत काफ़ी आवश्यकता थी, इस कारण चरण सिंह कृषि के स्तर को बहुत ज़्यादा उन्नत नहीं कर पाए। फिर भी उनका समर्पण असंदिग्ध था। उनकी ईमानदाराना कोशिशों की सदैव सराहना हुई। वह लोगों के लिए एक राजनीतिज्ञ से ज़्यादा सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्हें वक्तृत्व कला में भी महारत हासिल थी। यही कारण है कि उनकी जनसभाओं में भारी भीड़ जुटा करती थी। लोग उन्हें सुनने को लालयित रहते थे। फिर 1966 में सुचेता कृपलानी की सरकार में उन्हें मंत्री पद तो प्राप्त हो गया लेकिन कम महत्त्वपूर्ण विभाग मिले। 1969 में कांग्रेस का विघटन हो गया। चौधरी चरण सिंह कांग्रेस (ओ) के साथ जुड़ गए। इनकी निष्ठा कांग्रेस सिंडीकेट के प्रति रही। फिर वह कांग्रेस (ओ) के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री निर्वाचित हो गए, लेकिन बहुत समय तक मुख्यमंत्री पद पर नहीं रहे।
want to earn money join neobux click here to join
join donkeymails to earn money click here

join clixsense to earn upto 10$ per day click here
हदबंदी क़ानून
कांग्रेस के विभाजन का प्रभाव उत्तर प्रदेश राज्य की कांग्रेस पर भी पड़ा। केन्द्रीय स्तर का विभाजन राज्य स्तर पर भी लागू हुआ। कांग्रेसी नेता अपनी-अपनी निष्ठा के अनुसार इंदिरा कांग्रेस और सिंडीकेट कांग्रेस के साथ जुड़ गए। चूंकि चौधरी चरण सिंह इंदिरा गांधी के सहज विरोधी थे, इस कारण वह कांग्रेस (ओ) के कृपापात्र बन गए। जिस समय इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं, उस समय भी उत्तर प्रदेश संसदीय सीटों के मामले में बड़ा और महत्त्वपूर्ण राज्य था। फिर यह इंदिरा गांधी का गृह प्रदेश भी था। इस कारण उन्हें यह स्वीकार नहीं था कि कांग्रेस (ओ) का कोई व्यक्ति उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री रहे। अत: श्रीमती इंदिरा गांधी ने 2 अक्टूबर1970 को उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति   शासन लागू कर दिया। चौधरी चरण सिंह का मुख्यमंत्रित्व जाता रहा। इससे इंदिरा गांधी के प्रति चौधरी चरण सिंह का रोष और दुर्भावना द्विगुणित हो गई। लेकिन उत्तर प्रदेश की ज़मीनी राजनीति से चरण सिंह को बेदख़ल करना सम्भव नहीं था। वह उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार के लिए अग्रणी पुरुष माने जाते थे। 1939 में कृषकों के क़र्ज मुक्ति विधेयक को पारित कराने में चरण सिंह की निर्णायक भूमिका थी। 1960में उन्होंने भूमि हदबंदी क़ानून को लागू कराने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
want to earn money join neobux click here to join
join donkeymails to earn money click here

join clixsense to earn upto 10$ per day click here
प्रधानमंत्री पद पर
1977 में चुनाव के बाद जब केन्द्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो किंग मेकर जयप्रकाश नारायण के सहयोग से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृह मंत्री बनाया गया। इसी के बाद मोरारजी देसाई और चरण सिंह के मतभेद खुलकर सामने आए। इस प्रकार 28 जुलाई1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बनने में सफल हुए। काँग्रेस इं और सी. पी. आई. ने इन्हें बाहर से समर्थन प्रदान किया। यह तो स्पष्ट है कि यदि इंदिरा गांधी का समर्थन चौधरी चरण सिंह को न प्राप्त होता तो वह किसी भी स्थिति में प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे। राजनीति की विशेषता है कि इसमें स्थायी मित्रता एवं स्थायी शत्रुता का स्थान नहीं होता। विरोधी लोग भी मित्र बन जाते हैं और मित्र लोग विरोधी। राजनीति की यह विशेषता इस काल में ख़ास तौर पर देखी जा सकती थी। कभी मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह जनता दल के स्तम्भ थे तथा परम मित्र भी।
want to earn money join neobux click here to join
join donkeymails to earn money click here

join clixsense to earn upto 10$ per day click here
प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र
इंदिरा गांधी जानती थीं कि मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह के रिश्ते ख़राब हो चुके हैं। यदि चरण सिंह को समर्थन देने की बात कहकर बग़ावत के लिए मना लिया जाए तो जनता पार्टी में बिख़राव आरम्भ हो जाएगा। अत: इंदिरा गांधी ने चौधरी चरण सिंह की प्रधानमंत्री बनने की भावना को हवा दी। चरण सिंह ने इंदिरा गांधी की बात मान ली। वह 28 जुलाई 1979 को प्रधानमंत्री बने। लेकिन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने यह स्पष्ट कह दिया कि वह लोकसभा में अपना बहुमत 20 अगस्त1979 तक सिद्ध करें। इस प्रकार विश्वास मत प्राप्त करने के लिए उन्हें मात्र 13 दिन ही मिले थे। लेकिन इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त, 1979 को बिना बताए समर्थन वापस लिए जाने की घोषणा कर दी। अब यह प्रश्न नहीं था कि चौधरी साहब किसी भी प्रकार से विश्वास मत प्राप्त कर लेंगे। वह जानते थे कि विश्वास मत प्राप्त करना असम्भव था। यहाँ पर यह बताना प्रासंगिक होगा कि इंदिरा गांधी ने समर्थन के लिए शर्त लगाई थी। उसके अनुसार जनता पार्टी सरकार ने इंदिरा गांधी के विरुद्ध जो मुक़दमें क़ायम किए हैं, उन्हें वापस ले लिया जाए। लेकिन चौधरी साहब इसके लिए तैयार नहीं हुए थे। इस प्रकार की ग़लत सौदेबाज़ी करना चरण सिंह को क़बूल नहीं था। इसीलिए उन्होंने प्रधानमंत्री की कुर्सी गंवाना बर्दाश्त कर लिया। वह जानते थे कि उन्होंने ईमानदार नेता और सिद्धान्तवादी व्यक्ति की छवि बना रखी है, वह सदैव के लिए खण्डित हो जाएगी। अत: संसद का एक बार भी सामना किए बिना चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद का त्याग कर दिया।
want to earn money join neobux click here to join
join donkeymails to earn money click here

join clixsense to earn upto 10$ per day click here
मध्यावधि चुनाव
प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने के साथ-साथ चौधरी चरण सिंह ने राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी से मध्यावधि चुनाव की सिफ़ारिश भी की ताकि किसी अन्य द्वारा प्रधानमंत्री का दावा न किया जा सके। राष्ट्रपति ने इनकी अनुशंसा पर लोकसभा भंग कर दी। चौधरी चरण सिंह को लगता था कि इंदिरा गांधी की भाँति जनता पार्टी भी अलोकप्रिय हो चुकी है। अत: वह अपनी लोकदल पार्टी और समाजवादियों से यह उम्मीद लगा बैठे कि मध्यावधि चुनाव में उन्हें बहुमत प्राप्त हो जाएगा। इसके अलावा चरण सिंह को यह आशा भी थी कि उनके द्वारा त्यागपत्र दिए जाने के कारण जनता को उनसे निश्चय ही सहानुभूति होगी। उन्हें उत्तर प्रदेश की जनता से काफ़ी उम्मीद थी। किसानों में उनकी जो लोकप्रियता थी, वह असंदिग्ध थी। वह मध्यावधि चुनाव में 'किसान राजा' के चुनावी नारे के साथ में उतरे। तब कार्यवाहक प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ही थे, जब मध्यावधि चुनाव सम्पन्न हुए। वह 14 जनवरी1980 तक ही भारत के प्रधानमंत्री रहे। इस प्रकार उनका कार्यकाल लगभग नौ माह का रहा।
want to earn money join neobux click here to join
join donkeymails to earn money click here

join clixsense to earn upto 10$ per day click here
व्यक्तित्व
चौधरी चरण सिंह की व्यक्तिगत छवि एक ऐसे देहाती पुरुष की थी जो सादा जीवन और उच्च विचार में विश्वास रखता था। इस कारण इनका पहनावा एक किसान की सादगी को प्रतिबिम्बित करता था। एक प्रशासक के तौर पर उन्हें बेहद सिद्धान्तवादी और अनुशासनप्रिय माना जाता था। वह सरकारी अधिकारियों की लाल फ़ीताशाही और भ्रष्टाचार के प्रबल विरोधी थे। चरण सिंह सामाजिक न्याय के पोषक और लोक सेवा भावना से ओत-प्रोत रहे। चरण सिंह एक राजनीतिज्ञ थे और प्रत्येक राजनीतिज्ञ की यह स्वाभाविक इच्छा होती है कि वह राजनीति के शीर्ष पर पहुँचे। इसमें कुछ भी अनैतिक नहीं था। चरण सिंह अच्छे वक्ता थे और बेहतरीन सांसद भी। वह जिस कार्य को करने का मन बना लेते थे, फिर उसे पूरा करके ही रहते थे। चौधरी चरण सिंह राजनीति में स्वच्छ छवि रखने वाले इंसान थे। वह अपने समकालीन लोगों के समान गांधीवादी विचारधारा में यक़ीन रखते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधी टोपी को कई बड़े नेताओं ने त्याग दिया था लेकिन चौधरी चरण सिंह ने इसे जीवन पर्यन्त धारण किए रखा।
कुशल लेखक
बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि चरण सिंह एक कुशल लेखक की आत्मा भी रखते थे। उनका अंग्रेज़ी भाषा पर अच्छा अधिकार था। उन्होंने 'अबॉलिशन ऑफ़ ज़मींदारी', 'लिजेण्ड प्रोपराइटरशिप' और 'इंडियास पॉवर्टी एण्ड इट्स सोल्यूशंस' नामक पुस्तकों का लेखन भी किया। जनवरी 1980 में इंदिरा गांधी का पुरागमन चरण सिंह की राजनीतिक विदाई का महत्त्वपूर्ण कारण बना, यद्यपि वह ग्रामीणों के परामर्शदाता बनकर लोक कल्याण करते रहे।
want to earn money join neobux click here to join
join donkeymails to earn money click here

join clixsense to earn upto 10$ per day click here
मृत्यु
लोक कल्याण के दौरान उम्र भी अपना असर दिखाने लगी थी। अन्तत: उनकी जीवन यात्रा का रथ 29 मई,   1987  को थम गया। 84 वर्ष से अधिक उम्र पाने वाला वह किसान नेता मृत्यु के आग़ोश में चला गया। वह गांधीवादी विचारधारा के साथ ही अन्त तक अपना जीवन निर्वाह करते रहे। उनमें देश के प्रति वफ़ादारी का भाव था। वह कृषकों के सच्चे शुभचिन्तक थे। इतिहास में इनका नाम प्रधानमंत्री से ज़्यादा एक किसान नेता के रूप में जाना जाएगा।
want to earn money join neobux click here to join
join donkeymails to earn money click here
join clixsense to earn upto 10$ per day click here

No comments:

Post a Comment