नीलम संजीव रेड्डी (अंग्रेज़ी: Neelam Sanjiva Reddy, जन्म:19 मई, 1913 - मृत्यु: 1 जून, 1996) भारत के छठे राष्ट्रपति के रूप में जाने जाते है। नीलम संजीव रेड्डी भारत के ऐसे राष्ट्रपति थे जिन्हें राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होते हुए प्रथम बार विफलता प्राप्त हुई और दूसरी बार उम्मीदवार बनाए जाने पर राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। प्रथम बार इन्हें वी. वी. गिरि के कारण बहुत कम अंतर से हार स्वीकार करनी पड़ी थी। तब यह कांग्रेस द्वारा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाए गए थे और अप्रत्याशित रूप से हार गए। दूसरी बार गैर कांग्रेसियों ने इन्हें प्रत्याशी बनाया और यह विजयी हुए। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब वी. वी. गिरि को राष्ट्रपति चुनाव जीतने में सफलता प्रदान कराई, तब यह लगा था कि नीलम संजीव रेड्डी ने एक ऐसा मौक़ा गंवा दिया है, जो अब उनकी ज़िन्दगी में कभी नहीं आएगा। लेकिन राजनीति के पण्डितों के अनुमान और दावे धरे रह गए। भाग्य की शुभ करवट ने नीलम संजीव रेड्डी जैसे हारे हुए योद्धा को विजयी योद्धा के रूप में परिवर्तित कर दिया। यह भारतीय राजनीति के ऐसे अध्याय बनकर सामने आए, जो अनिश्चितता का प्रतिनिधित्व करते नज़र आते हैं। संजीव रेड्डी भारत के एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति थे, जो निर्विरोध निर्वाचित हुए।
जीवन परिचय
नीलम संजीव रेड्डी का जन्म 19 मई, 1913 को इल्लुर
ग्राम, अनंतपुर ज़िले में हुआ था जो आंध्र प्रदेश में है। आंध्र प्रदेश के
कृषक परिवार में जन्मे नीलम संजीव
रेड्डी की छवि कवि, अनुभवी राजनेता एवं कुशल प्रशासक के रूप
में थी। इनका परिवार संभ्रांत तथा भगवान शिव का परम भक्त था। इनके पिता का नाम नीलम चिनप्पा रेड्डी था जो कांग्रेस
पार्टी के काफ़ी पुराने कार्यकर्ता और प्रसिद्ध नेता टी. प्रकाशम के साथी थे।
शिक्षा
नीलम संजीव रेड्डी की प्राथमिक शिक्षा 'थियोसोफिकल हाई स्कूल' अड़यार, मद्रास में सम्पन्न हुई। आगे की
शिक्षा आर्ट्स कॉलेज, अनंतपुर में प्राप्त की। महात्मा गांधी के आह्वान पर जब लाखों
युवा पढ़ाई और नौकरी का त्याग कर स्वाधीनता संग्राम में जुड़ रहे थे, तभी नीलम संजीव रेड्डी मात्र 18 वर्ष की उम्र में ही इस आंदोलन
में कूद पड़े थे। इन्होंने भी पढ़ाई छोड़ दी थी। संजीव रेड्डी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी भाग लिया था। यह
उस समय आकर्षण का केन्द्र बने, जब उन्होंने विद्यार्थी जीवन
में सत्याग्रह किया था। वह युवा कांग्रेस के सदस्य थे। उन्होंने कई राष्ट्रवादी
कार्यक्रमों में हिस्सेदारी भी की थी। इस दौरान इन्हें कई बार जेल की सज़ा भी
काटनी पड़ी।
विवाह
नीलम संजीव रेड्डी का विवाह 8 जून, 1935 को नागा रत्नम्मा के साथ
सम्पन्न हुआ था। इनके एक पुत्र एवं तीन पुत्रियाँ हैं। पुत्र सुधीर रेड्डी अनंतपुर
में सर्जन की हैसियत से अपना स्वतंत्र क्लिनिक पार्टी ऑफ़ इण्डिया के प्रभावशाली
नेता रहे हैं और आज़ादी की लड़ाई में यह भी कई बार जेल गए हैं।
राजनीतिक जीवन
बीस वर्ष की उम्र में ही नीलम संजीव रेड्डी
काफ़ी सक्रिय हो चुके थे। राज्य की राजनीति में भी एक कुशल प्रशासक के तौर पर इनका
प्रभाव अनुभव किया जाने लगा था। यह 1936 में आंध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के
सामान्य सचिव निर्वाचित हुए और इस पद पर 10 वर्ष से अधिक समय
गुजारा। यह इस बात को सिद्ध करता है कि वह प्रतिभावान थे और उनमें नेतृत्व के गुण
थे। नीलम संजीव रेड्डी संयुक्त मद्रास राज्य में आवासीय वन एवं मद्य निषेध
मंत्रालय के कार्यों का भी सम्पादन करते थे। तब कुमारास्वामी राजा मुख्यमंत्री थे। यह समय 1949 से 1951 तक का था। 1951 में इन्होंने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया, ताकि
आंध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष पद के चुनाव में भाग ले सकें। इस चुनाव
में नीलम संजीव रेड्डी प्रोफेसर एन.जी. रंगा को हराकर अध्यक्ष
निर्वाचित हुए। इसी वर्ष यह' अखिल भारतीय कांग्रेस कार्य
समिति' और 'केन्द्रीय संसदीय मंडल'
के भी निर्वाचित सदस्य बन गए। इस प्रकार इन्हें राष्ट्रीय स्तर की
छवि एवं दर्जा प्राप्त हो गया।
दुर्घटना
नीलम संजीव रेड्डी के निजी जीवन में एक दुखद
घटना घटी। इनका पाँच वर्षीय पुत्र मोटर दुर्घटना में काल-कवलित हो गया। इस घटना से
यह इतना व्यथित हुए कि 'आंध्र प्रदेश कांग्रेस समिति'
की अध्यक्षता से त्यागपत्र दे दिया लेकिन इन्हें त्यागपत्र वापस
लेने के लिए मना लिया गया। 1952 में इन्हें राज्य सभा के लिए चुना गया लेकिन 1953 में इन्होंने सदस्यता
त्याग दी। फिर यह टी. प्रकाशम की कैबिनेट में उपमुख्यमंत्री बनाए गए थे। जबकि 1955 से पूर्व तक यह 'मद्रास विधानसभा' के लिए चुने गए।
1956 में जब राज्यों के पुनर्गठन का कार्य किया गया तो नीलम संजीव रेड्डी आंध्र प्रदेश के 'प्रथम मुख्यमंत्री' बने। तब इनकी उम्र 43 वर्ष थी और यह भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे। इन्हें 3 दिसम्बर 1956 को सर्वसम्माति से 'अखिल भारतीय कांग्रेस' का अध्यक्ष बनाया गया और इन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। लेकिन यह तब मुख्यमंत्री कार्यालय में बने रहे, जब तक कि नए मुख्यमंत्री के रूप में डी. संजीवैय्या ने 11 जनवरी 1960 को अपना कार्यभार नहीं संभाल लिया। इन्हें कांग्रेस की अध्यक्षता श्रीमती इंदिरा गांधी से प्राप्त हुई थी, जिन्हें 2 फरवरी 1959 को यू. एन. देवधर के त्यागपत्र देने पर अध्यक्ष बनाया गया था।
1956 में जब राज्यों के पुनर्गठन का कार्य किया गया तो नीलम संजीव रेड्डी आंध्र प्रदेश के 'प्रथम मुख्यमंत्री' बने। तब इनकी उम्र 43 वर्ष थी और यह भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे। इन्हें 3 दिसम्बर 1956 को सर्वसम्माति से 'अखिल भारतीय कांग्रेस' का अध्यक्ष बनाया गया और इन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। लेकिन यह तब मुख्यमंत्री कार्यालय में बने रहे, जब तक कि नए मुख्यमंत्री के रूप में डी. संजीवैय्या ने 11 जनवरी 1960 को अपना कार्यभार नहीं संभाल लिया। इन्हें कांग्रेस की अध्यक्षता श्रीमती इंदिरा गांधी से प्राप्त हुई थी, जिन्हें 2 फरवरी 1959 को यू. एन. देवधर के त्यागपत्र देने पर अध्यक्ष बनाया गया था।
जेल यात्रा
रेड्डी 1940
से 1945 तक जेल में कैद रहे। यह प्रथम बार
सितम्बर 1940 में छह माह के लिए जेल गए। तब इन्हें वेल्लूर
और तिरुचिरापल्ली की जेलों में रखा गया।
दूसरी बार इन्हें 1 जून 1941 से 18 मार्च 1942 तक वेल्लूर की जेल
में राष्ट्रविरोधी गतिविधियाँ संचालित करने के आरोप में कैद किया गया। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इन्हें 11 अगस्त 1942 को गिरफ्तार करके अमरावती तथा वेल्लूर की जेलों में
कैद थे। वह 1945 तक जेल में रहे। रिहाई के बाद 1946 में यह मद्रास विधायिका में निर्वाचित हुए तथा 1947 में
मद्रास विधायिका में सेक्रेटरी बनाए गए। 1947 में यह भारत की
संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य भी रहे।
नैतिक मूल्या
रेड्डी ने कांग्रेस पार्टी के तीन सत्रों की
अध्यक्षता की। 10 मार्च 1962 को इन्होंने कांग्रेस के
अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। यह 12 मार्च 1962 को पुन: आंध्र
प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, जब डी. संजीवैय्या मुख्यमंत्री
पद से हटा दिए गए। फरवरी 1964 में इन्होंने स्वेच्छा से
मुख्यमंत्री का पद त्याग दिया और इसका आधार नैतिक मूल्यों को बताया। आंध्र प्रदेश
में सड़कों का राष्ट्रीयकरण किया गया था। और उस पर उच्चतम न्यायालय द्वारा विचार किया जा रहा
था। इस कारण रेड्डी ने मुख्यमंत्री बने रहना उचित नहीं समझा। इसके बाद इनके सहयोगी राज्यपाल ब्रह्मानन्द रेड्डी ने
इन्हें नए मंत्रिमंडल का न्योता दिया और यह विधानसभा में कांग्रेस के नेता चुन लिए
गए।
खान मंत्रालय
9 जून 1964 को रेड्डी राष्ट्रीय
राजनीति में आए और प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने इन्हें केन्द्र में
स्टील एवं खान मंत्रालय प्रदान किया। 1964 में ही यह
राज्यसभा के लिए मनोतीत हुए और 1967 तक इसके सदस्य बने रहे।
जनवरी 1966 से मार्च 1967 तक वह
प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल में रहे। इन्होंने यातायात,
जहाजरानी, नागरिक उड्डयन एवं टूरिज्म का कार्य
कैबिनेट मंत्री के रूप में देखा। 1967 के लोक सभा चुनाव में रेड्डी
हिन्दपुर से निर्वाचित हुए, जो आंध्र प्रदेश की ही सीट थी। 17 मार्च 1967 को इन्हें लोक सभा का स्पीकर बनाया गया।
लेकिन 19 जुलाई 1969 को इन्होंने लोकसभा
के स्पीकर पद से त्यागपत्र दे दिया। यह कांग्रेस पार्टी की ओर से राष्ट्रपति चुनाव
हेतु अधिकृत उम्मीदवार बनाए गए थे।
इस ऐतिहासिक चुनाव ने कांग्रेस को दो भागों में
विभक्त कर दिया। एक, कांग्रेस-ओ और दूसरी, कांग्रेस-आर के रूप में सामने आई। 1971 में जब लोक सभा के चुनाव
आहूत हुए तो नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस-ओ के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे लेकिन
इन्हें हार का सामना करना पड़ा। उस समय इंदिरा लहर के सम्मुख कई बड़े दिग्गज अपने
पांवों की ज़मीन गंवा बैठे थे। इस हार से रेड्डी को गहरा धक्का लगा। वह अनंतपुर
लौट गए और अपना अधिकांश समय कृषि कार्यों में ही गुजारने
लगे। एक लम्बे अंतराल की राजनीतिक खामोशी के बाद 1 मई 1975 को नीलम संजीव रेड्डी
पुन: सक्रिय राजनीति में उतरे। उन्होंने जयप्रकाश नारायण के साथ हैदराबाद में जनसमूह को सम्बोधित
किया। जनवरी 1977 में यह जनता पार्टी की
कार्य समिति के सदस्य बनाए गए और छठवीं लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की
ओर से आंध्र प्रदेश की नंड्याल सीट से
उन्होंने अपना नामांकन पत्र भरा। जब चुनाव के नतीजे आए तो वह आंध्र प्रदेश से
अकेले गैर कांग्रेसी उम्मीदवार थे, जो विजयी हुए थे।
राष्ट्रपति पद पर
26 मार्च 1977 को नीलम संजीव रेड्डी को
सर्वसम्मति से लोकसभा का स्पीकर चुन लिया गया। लेकिन 13 जुलाई 1977 को उन्होंने यह पद
छोड़ दिया क्योंकि इन्हें राष्ट्रपति पद हेतु नामांकित किया जा रहा था। रेड्डी ने
यह पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि यदि उन्हें सर्वसम्मति से राष्ट्रपति पद का
उम्मीदवार बनाया जाता है तभी वह नामांकन पत्र दाखिल करेंगे। इस बार यह कोई भी
ख़तरा लेने के मूड में नहीं थे। वह पुराना इतिहास दोहराए जाने से भयभीत थे। अंतत:
सभी आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं और नीलम संजीव रेड्डी सर्वसम्मति से निर्विरोध
आठवें राष्ट्रपति चुन लिए गए। सभी राजनीतिक दलों ने इन्हें अंतरात्मा की आवाज़ पर
राष्ट्रपति चुना था। इस प्रकार इस दौर में एक अनोखी राजनीतिक घटना घटी। 19 जुलाई 1977 को नामांकन पंत्रों
की जांच का कार्य किया गया। रेड्डी के अतिरिक्त जितने भी नामांकन प्राप्त हुए
उनमें व्यतिक्रम था। इस आधार पर सभी को खारिज कर दिया गया। कुल मिलाकर 21 नामांकन पत्र दाखिल किए गए थे, जिनमें से कुछ
उम्मीदवार को आवश्यक संख्या में विधायकों एवं सांसदों का समर्थन नहीं था अथवा
उम्मीदवारों ने 2500 रुपये की जमानत राशि जमा नहीं कराई थी। 21 जुलाई को सायंकाल 3 बजे तक नाम वापस लिया जा सकता था। फिर 3 बजकर 5
मिनट पर चुनाव अधिकारी ने प्रेस को सूचित किया कि नीलम संजीव रेड्डी
निर्विरोध चुनाव जीत गए हैं। इस घोषणा के पश्चात रेड्डी ने लोकसभा की सदस्यता से
त्यागपत्र दे दिया, जो नियमानुसार आवश्यक था। 21 जुलाई 1977 को मध्याह्न से पूर्व ही के. एस. हेगड़े को लोकसभा अध्यक्ष बना दिया गया।
नया अध्याय
राष्ट्रपति चुन लिए जाने के बाद नीलम संजीव
रेड्डी अपने जीवन का नया अध्याय आरंभ करने के लिए अपनी पत्नी श्रीमती नागा
रत्नम्मा के साथ प्रात: राजघाट दिल्ली स्थित महात्मा गांधी की समाधि पर गए ताकि
उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर सकें। इस समय रेड्डी ने खादी की बेदाग़ अचकन और
गांधी टोपी धारण कर रखी थी। फिर यह 9, अकबर रोड से राष्ट्रपति भवन के लिए रवाना हुए। यहाँ
से कार्यवाहक राष्ट्रपति (उपराष्ट्रपति) बी. डी. जत्ती को साथ लेकर संसद भवन में
पहुंचे ताकि वहाँ पद एवं गोपनीयता की शपथ ग्रहण कर सकें। संसद भवन में
प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, लोकसभा के स्पीकर के. एस. हेगड़े, सर्वोच्च न्यायालय
के मुख्य न्यायाधीश एम.एच. बेग तथा अन्य विशिष्ट अतिथि उपस्थित थे। 25 जुलाई 1977 को प्रात: काल 10
बजे केन्द्रीय हॉल में शपथ ग्रहण समारोह सम्पन्न हुआ। इस प्रकार
रेड्डी छठे निर्वाचित राष्ट्रपति बन गए। सुबह 10 बजकर 11
मिनट पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने इन्हें पद एवं
गोपनीयता की शपथ ग्रहण कराई। शपथ ग्रहण के समय नीलम संजीव रेड्डी 64 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके थे। 21 तोपों की सलामी के
साथ रेड्डी ने राष्ट्रपति कार्यालय संभाल लिया। उन्होंने हिन्दी एवं अंग्रेज़ी भाषा में शपथ ली। फिर रेड्डी
ने 800 शब्दों में संक्षिप्त सम्बोधन दिया।
उपराष्ट्रपति बी.डी. जत्ती, जिनके पास कार्यवाहक राष्ट्रपति पद का भी दायित्व था, ने राष्ट्रपति पद का उत्तरदायित्व औपचारिक रूप से रेड्डी को सौंप दिया। गृह मामलों के मंत्रालय ने इस संबंध में भारतवर्ष के गजट में अधिसूचना प्रकाशित की जिसका क्रमांक एस. ओ. 585 (ई) दिनांक 25 जुलाई 1977 था। नीलम संजीव रेड्डी ने सेना समारोह के बड़े भाग को कम कर दिया। फिर वह खुली कार में बैठकर संसद भवन से राष्ट्रपति भवन रवाना हुए। राष्ट्रपति भवन में औपचारिकताएं पूर्ण होने के बाद रक्षामंत्री जगजीवन राम ने उनका परिचय तीनों सेनाओं के सेनाध्यक्षों से कराया। इस प्रकार नीलम संजीव रेड्डी ऐसे दूसरे राष्ट्रपति बने, जो तकनीकी रूप से कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रपति नहीं थे। पहले राष्ट्रपति वी. वी. गिरि थे, क्योंकि वह स्वतंत्र उम्मीदवार की हैसियत से खड़े हुए थे, यद्यपि उन्हें कांग्रेस पार्टी के सदस्यों का समर्थन प्राप्त था। लेकिन नीलम संजीव रेड्डी के सर्वसम्मति से राष्ट्रपति बनने के बाद सभी गतिरोध थम गए। उन परिस्थितियों में यह अच्छा ही था, क्योंकि सरकार में कई पार्टियां शामिल थीं और शासन चलाने के लिए राष्ट्रपति को सभी का सहयोग अपेक्षित था।
उपराष्ट्रपति बी.डी. जत्ती, जिनके पास कार्यवाहक राष्ट्रपति पद का भी दायित्व था, ने राष्ट्रपति पद का उत्तरदायित्व औपचारिक रूप से रेड्डी को सौंप दिया। गृह मामलों के मंत्रालय ने इस संबंध में भारतवर्ष के गजट में अधिसूचना प्रकाशित की जिसका क्रमांक एस. ओ. 585 (ई) दिनांक 25 जुलाई 1977 था। नीलम संजीव रेड्डी ने सेना समारोह के बड़े भाग को कम कर दिया। फिर वह खुली कार में बैठकर संसद भवन से राष्ट्रपति भवन रवाना हुए। राष्ट्रपति भवन में औपचारिकताएं पूर्ण होने के बाद रक्षामंत्री जगजीवन राम ने उनका परिचय तीनों सेनाओं के सेनाध्यक्षों से कराया। इस प्रकार नीलम संजीव रेड्डी ऐसे दूसरे राष्ट्रपति बने, जो तकनीकी रूप से कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रपति नहीं थे। पहले राष्ट्रपति वी. वी. गिरि थे, क्योंकि वह स्वतंत्र उम्मीदवार की हैसियत से खड़े हुए थे, यद्यपि उन्हें कांग्रेस पार्टी के सदस्यों का समर्थन प्राप्त था। लेकिन नीलम संजीव रेड्डी के सर्वसम्मति से राष्ट्रपति बनने के बाद सभी गतिरोध थम गए। उन परिस्थितियों में यह अच्छा ही था, क्योंकि सरकार में कई पार्टियां शामिल थीं और शासन चलाने के लिए राष्ट्रपति को सभी का सहयोग अपेक्षित था।
राष्ट्रपति निर्वाचन
राष्ट्रपति निर्वाचित होने के बाद नीलम संजीव
रेड्डी ने एक मजेदार वक्तव्य पत्रकारों के समक्ष दिया,"स्पीकर देखा तो जाता है लेकिन सुना
नहीं जाता लेकिन राष्ट्रपति न तो देखा जाता है और ही सुना जाता है।" रेड्डी
ने भरोसा दिलाया कि वह वैसे ही राष्ट्रपति होंगे लेकिन ऐसे राष्ट्रपति भी रहेंगे
जो निर्णय भी ले। मैं खामोशी के साथ ही कुछ नया चाहूंगा। नीलम संजीव रेड्डी का 50
वर्षीय राजनीतिक जीवन भी राष्ट्रपति बनने के बाद उनके साथ था। इस
कारण वह काफ़ी अनुभवी और योग्य राष्ट्रपति सिद्ध होने वाले थे। इन्हें जनता पार्टी
सरकार के गठन के बाद 1977 में निर्विरोध चुना गया, जिस समय कांग्रेस पार्टी का केन्द्र में लगभग कोई वजूद ही नहीं रह गया था।
इन्होंने स्वस्थ ऐतिहासिक परम्पराओं का निर्वहन किया तथा कांग्रेस पार्टी से बराबर
समंवय और सहयोग बनाए रखा, जब 1980 में कांग्रेस पुन: सत्ता
में आई। रेड्डी ने इस दौरान राष्ट्रपति पद की मर्यादा का निर्वाह उसी रूप में किया,
जिस रूप के प्रदर्शन हेतु हमारे दिग्गज नेताओं ने राष्ट्रपति के
संवैधानिक पद की व्यवस्था की थी।
अपने राष्ट्रपति काल में रेड्डी ने दो प्रधानमंत्री पदासीन किए और तीन प्रधानमंत्रियों के साथ कार्य-व्यवहार रखा। यह प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह तथा श्रीमती इंदिरा गांधी थे। इस प्रकार रेड्डी ने अपना कार्यकाल पूरी गरिमा के साथ पूर्ण किया, फिर यह आंध्र प्रदेश के अपने आदर्श गृह नगर अनंतपुर लौट गए। राष्ट्रपति कार्यकाल की ज़िम्मेदारी से मुक्त होने से कुछ दिनों पहले इन्होंने प्रेस वार्ता का आयोजन किया था। प्रेस वार्ता में रेड्डी ने स्वीकार किया कि जब जनता पार्टी अंतर्कलह के कारण बिखर गई तो वह काफ़ी अकेला महसूस कर रहे थे। जनता पार्टी का बिखराव होना, मोरारजी देसाई द्वारा त्यागपत्र दिया जाना तथा चौधरी चरण सिंह का प्रधानमंत्री बनना एवं अल्पमत में आ जाना आदि घटनाएं काफ़ी दुखद हैं। इन घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में रेड्डी ने स्पष्ट किया कि उनके सामने आपात स्थिति थी और उन्हें राष्ट्रपति की संवैधानिक मर्यादा के अनुसार ही प्रत्येक मौके पर निर्णय लेने थे। तब इन्होंने अपनी विवेक शक्ति का प्रयोग करते हुए काफ़ी कठिन निर्णय भी किए। यदि इतिहास आज इन निर्णयों की समीक्षा करता है तो उन्हें उचित ही ठहराएगा।
अपने राष्ट्रपति काल में रेड्डी ने दो प्रधानमंत्री पदासीन किए और तीन प्रधानमंत्रियों के साथ कार्य-व्यवहार रखा। यह प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह तथा श्रीमती इंदिरा गांधी थे। इस प्रकार रेड्डी ने अपना कार्यकाल पूरी गरिमा के साथ पूर्ण किया, फिर यह आंध्र प्रदेश के अपने आदर्श गृह नगर अनंतपुर लौट गए। राष्ट्रपति कार्यकाल की ज़िम्मेदारी से मुक्त होने से कुछ दिनों पहले इन्होंने प्रेस वार्ता का आयोजन किया था। प्रेस वार्ता में रेड्डी ने स्वीकार किया कि जब जनता पार्टी अंतर्कलह के कारण बिखर गई तो वह काफ़ी अकेला महसूस कर रहे थे। जनता पार्टी का बिखराव होना, मोरारजी देसाई द्वारा त्यागपत्र दिया जाना तथा चौधरी चरण सिंह का प्रधानमंत्री बनना एवं अल्पमत में आ जाना आदि घटनाएं काफ़ी दुखद हैं। इन घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में रेड्डी ने स्पष्ट किया कि उनके सामने आपात स्थिति थी और उन्हें राष्ट्रपति की संवैधानिक मर्यादा के अनुसार ही प्रत्येक मौके पर निर्णय लेने थे। तब इन्होंने अपनी विवेक शक्ति का प्रयोग करते हुए काफ़ी कठिन निर्णय भी किए। यदि इतिहास आज इन निर्णयों की समीक्षा करता है तो उन्हें उचित ही ठहराएगा।
विदेशी यात्राएँ
नीलम संजीव रेड्डी ने कई देशों की यात्राएँ की, जिनमें पश्चिम जर्मनी, आस्ट्रेलिया, यू. के. , फ्रांस हंगरी, पोलैण्ड, कनाडा,
पेरू, नेपाल, यूगांडा,
जाम्बिया, केन्या और अमेरिका के नाम उल्लेखनीय हैं।
उपाधि
नीलम संजीव रेड्डी को 1958 में सम्मानार्थ डॉक्टरेट की उपाधि
वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, त्रिमूर्ति द्वारा प्रदान की गई।
निधन
25 जुलाई, 1982 को अपना कार्यकाल पूरा
करने के पश्चात नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति पद के दायित्व से मुक्त हो गए। फिर
लगभग 14 वर्ष बाद 1 जून 1996 को इनका निधन हो
गया। यदि हम रेड्डी के जीवन वृत्तांत पर दृष्टि डाले तो यह स्वीकार करना होगा कि
उन्होंने राजनीति में रहते हुए भी उसकी गरिमा का सदैव पालन किया। इस प्रकार नीलम
संजीव रेड्डी का जीवन हमें कई रंगों में रंगा नज़र आता है। लेकिन इनकी राष्ट्रवादी
सोच और राजनीतिज्ञ के रूप में इनका अनुशासन भाव निश्चय ही प्रंशसनीय रहा है। एक
राष्ट्रपति के रूप में भी उन्होंने संवैधानिक मर्यादाओं का सफलतापूर्वक निर्वहन
किया था। यह भारत माता के ऐसे सपूत रहे हैं,
जिन पर प्रत्येक भारतीय को गर्व है।