Tuesday 31 January 2017

कल्पना चावला



उनकी कहानी कल्पनाओं जैसी ही है. भारत के गांव में पैदा होकर नासा में कदम रखना और फिर अंतरिक्ष का चक्कर लगाना. कल्पनालोक की कल्पना चावला आज के दिन अंतरिक्ष में विलीन हो गईं, लेकिन धरती पर लाखों कल्पनाएं छोड़ गईं.

प्रारंभिक जीवन

भारत की बेटी-कल्पना चावला करनाल, हरियाणा, भारत| में एक हिंदू भारतीय परिवार में जन्म लिया था। उनका जन्म 17 मार्च् सन् 1962 मे एक भारतीय परिवार मे हुआ था। उसके पिता का नाम श्री बनारसी लाल चावला और माता का नाम संजयोती था। वह अपने परिवार के चार भाई बहनो मे सबसे छोटी थी। घर मे सब उसे प्यार से मोंटू कहते थे। कल्पना की प्रारंभिक पढाईटैगोर बाल निकेतनमे हुई। कल्पना जब आठवी कक्षा मे पहुची तो उसने इंजिनयर बनने की इच्छा प्रकट की। उसकी माँ ने अपनी बेटी की भावनाओ को समझा और आगे बढने मे मदद की। पिता उसे चिकित्सक या शिक्षिका बनाना चाहते थे। किंतु कल्पना बचपन सेही अंतरिक्ष में घूमने की कल्पना करती थी। कल्पना का सर्वाधिक महत्वपूर्ण गुण था - उसकी लगन और जुझार प्रवृति। कलपना तो काम करने मे आलसी थी और असफलता मे घबराने वाली थी।  उनकी उड़ान में दिलचस्पी जहाँगीर रतनजी दादाभाई टाटा से प्रेरित थी जो एक अग्रणी भारतीय विमान चालक और उद्योगपति थे।

 शिक्षा

कल्पना चावला ने प्रारंभिक शिक्षा टैगोर पब्लिक स्कूल करनाल से प्राप्त की। आगे की शिक्षा वैमानिक अभियान्त्रिकी में पंजाब इंजिनियरिंग कॉलेज, चंडीगढ़, भारत से करते हुए 1982 में अभियांत्रिकी स्नातक की उपाधि प्राप्त की। वे संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए 1982 में चली गईं और 1984 वैमानिक अभियान्त्रिकी में विज्ञान निष्णात की उपाधि टेक्सास विश्वविद्यालय आर्लिंगटन से प्राप्त की। कल्पना जी ने 1986 में दूसरी विज्ञान निष्णात की उपाधि पाई और 1988 में कोलोराडो विश्वविद्यालय बोल्डर से वैमानिक अभियंत्रिकी में विद्या वाचस्पति की उपाधि पाई। कल्पना जी को हवाईजहाज़ों, ग्लाइडरों व्यावसायिक विमानचालन के लाइसेंसों के लिए प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक का दर्ज़ा हासिल था। उन्हें एकल बहु इंजन वायुयानों के लिए व्यावसायिक विमानचालक के लाइसेंस भी प्राप्त थे। अन्तरिक्ष यात्री बनने से पहले वो एक सुप्रसिद्ध नासा कि वैज्ञानिक थी।

एम्स अनुसंधान केंद्र

१९८८ के अंत में उन्होंने नासा के एम्स अनुसंधान केंद्र के लिए ओवेर्सेट मेथड्स इंक के उपाध्यक्ष के रूप में काम करना शुरू किया, उन्होंने वहाँ वी/एसटीओएल में सीएफ़डी पर अनुसंधान किया

नासा कार्यकाल

कल्पना जी मार्च १९९५ में नासा के अंतरिक्ष यात्री कोर में शामिल हुईं और उन्हें १९९८ में अपनी पहली उड़ान के लिए चुना गया था। उनका पहला अंतरिक्ष मिशन १९ नवम्बर १९९७ को छह अंतरिक्ष यात्री दल के हिस्से के रूप में अंतरिक्ष शटल कोलंबिया की उड़ान एसटीएस-८७ से शुरू हुआ। कल्पना जी अंतरिक्ष में उड़ने वाली प्रथम भारत में जन्मी महिला थीं और अंतरिक्ष में उड़ाने वाली भारतीय मूल की दूसरी व्यक्ति थीं। राकेश शर्मा ने १९८४ में सोवियत अंतरिक्ष यान में एक उड़ान भरी थी। कल्पना जी अपने पहले मिशन में .०४ करोड़ मील का सफ़र तय कर के पृथ्वी की २५२ परिक्रमाएँ कीं और अंतरिक्ष में ३६० से अधिक घंटे बिताए। एसटीएस-८७ के दौरान स्पार्टन उपग्रह को तैनात करने के लिए भी ज़िम्मेदार थीं, इस खराब हुए उपग्रह को पकड़ने के लिए विंस्टन स्कॉट और तकाओ दोई को अंतरिक्ष में चलना पड़ा था। पाँच महीने की तफ़्तीश के बाद नासा ने कल्पना चावला को इस मामले में पूर्णतया दोषमुक्त पाया, त्रुटियाँ तंत्रांश अंतरापृष्ठों यान कर्मचारियों तथा ज़मीनी नियंत्रकों के लिए परिभाषित विधियों में मिलीं।
एसटीएस-८७ की उड़ानोपरांत गतिविधियों के पूरा होने पर कल्पना जी ने अंतरिक्ष यात्री कार्यालय में, तकनीकी पदों पर काम किया, उनके यहाँ के कार्यकलाप को उनके साथियों ने विशेष पुरस्कार दे के सम्मानित किया।
१९८३ में वे एक उड़ान प्रशिक्षक और विमानन लेखक, जीन पियरे हैरीसन से मिलीं और शादी की और १९९० में एक देशीयकृत संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिक बनीं।
भारत के लिए चावला की आखिरी यात्रा १९९१-१९९२ के नए साल की छुट्टी के दौरान थी जब वे और उनके पति, परिवार के साथ समय बिताने गए थे। २००० में उन्हें एसटीएस-१०७ में अपनी दूसरी उड़ान के कर्मचारी के तौर पर चुना गया। यह अभियान लगातार पीछे सरकता रहा, क्योंकि विभिन्न कार्यों के नियोजित समय में टकराव होता रहा और कुछ तकनीकी समस्याएँ भी आईं, जैसे कि शटल इंजन बहाव अस्तरों में दरारें। १६ जनवरी २००३ को कल्पना जी ने अंततः कोलंबिया पर चढ़ के विनाशरत एसटीएस-१०७ मिशन का आरंभ किया। उनकी ज़िम्मेदारियों में शामिल थे स्पेसहैब/बल्ले-बल्ले/फ़्रीस्टार लघुगुरुत्व प्रयोग जिसके लिए कर्मचारी दल ने ८० प्रयोग किए, जिनके जरिए पृथ्वी अंतरिक्ष विज्ञान, उन्नत तकनीक विकास अंतरिक्ष यात्री स्वास्थ्य सुरक्षा का अध्ययन हुआ। कोलंबिया अन्तरिक्ष यान में उनके साथ अन्य यात्री थे-
·         कमांडर रिक डी . हुसबंद
·         पायलट विलियम . मैकूल
·         कमांडर माइकल . एंडरसन
·         इलान रामों
·         डेविड .ब्राउन
·         लौरेल बी.क्लार्क
अंतरिक्ष पर पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला कल्पना चावला की दूसरी अंतरिक्ष यात्रा ही उनकी अंतिम यात्रा साबित हुई। सभी तरह के अनुसंधान तथा विचार - विमर्श के उपरांत वापसी के समय पृथ्वी के वायुमंडल मे अंतरिक्ष यान के प्रवेश के समय जिस तरह की भयंकर घटना घटी वह अब इतिहास की बात हो गई। नासा तथा विश्व के लिये यह एक दर्दनाक घटना थी। फ़रवरी २००३ को कोलंबिया अंतरिक्षयान पृथ्वी की कक्षा मे प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया। देखते ही देखते अंतरिक्ष यान और उसमें सवार सातों यात्रियों के अवशेष टेक्सास नामक शहर पर बरसने लगे और सफ़ल कहलया जाने वाला अभियान भीषण सत्य बन गया।
ये अंतरिक्ष यात्री तो सितारों की दुनिया में विलीन हो गए लेकिन इनके अनुसंधानों का लाभ पूरे विश्व को अवश्य मिलेगा। इस तरह कल्पना चावला के यह शब्द सत्य हो गए,” मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूँ। प्रत्येक पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है और इसी के लिए ही मरूँगी।
16 दिन अंतरिक्ष में बिता कर एक फरवरी, 2003 को तीव्र गति से लौटता कोलंबिया यान धरती से सिर्फ 16 मिनट की दूरी पर था. तभी आसमान में बिजली कौंधी, धमाका हुआ, आग का शोला निकला और सब खत्म हो गया. अमेरिका, भारत और पूरी दुनिया स्तब्ध रह गई. भारतीय मूल की अमेरिकी कल्पना चावला सहित सात अंतरिक्ष यात्री सदा के लिए आकाश के हो गए.
फ्लोरिडा के अंतरिक्ष स्पेस स्टेशन का झंडा आधा झुका दिया गया. आसमान से अंतरिक्ष यान का थोड़ा बहुत मलबा टेक्सास और लुईजियाना के आस पास गिरा. टूटी हुई कल्पनाएं किसी पार्क, किसी जंगल, किसी दफ्तर में बिखर गईं. नासा भावुक हो गया. न जाने कितनी कल्पनाओं को हकीकत में बदलने वाली संस्था ने अपनी उड़ानों के पर कतर दिए. शटल प्रोग्राम मैनेजर रॉन डिटेमोर ने रुंधे गले से एलान किया, "हम तब तक उड़ान नहीं भरेंगे, जब तक इस हादसे के बारे में समझ न आ जाए. हमने जरूर कोई गलती की होगी."
सात अंतरिक्ष यात्रियों में दो महिलाएं थीं, लॉरेल क्लार्क और कल्पना चावला. हरियाणा के करनाल में पैदा हुई चावला बच्चियों और महिलाओं के लिए मिसाल बनीं. भारत में पढ़ाई करने के बाद अमेरिकी एजेंसी में काम करने वाली चावला का यह दूसरा अंतरिक्ष दौरा था.
वॉशिंगटन पोस्ट ने अगले दिन हेडलाइन लगाई, "कोलंबिया खो गया." आसमान में हुए इस हादसे ने ज्यादातर अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों की जान ली. लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स ने अगले दिन के संस्करण में चावला को खास तरजीह दी. उनके घर करनाल से एमी वाल्डमैन ने विशेष रिपोर्ट भेजी कि किस तरह "लड़कों की चाह रखने वाले इलाके में एक लड़की पर लोग नाज" किया करते थे. वाल्डमैन ने इस रिपोर्ट में बताया है कि किस तरह लोग उसके स्कूल में जमा हुए थे कि "लैंडिंग का जश्न मनाएंगे लेकिन जब यान नष्ट हो गया, तो वहां सन्नाटा फैल गया."
रिपोर्ट की आखिरी पंक्ति कहती है, "कल्पना चावला मर नहीं सकती." अगर गौर से देखा जाए, तो लाखों बच्चियों में नई ऊर्जा और नई कल्पनाएं भरने वाली कल्पना चावला आस पास ही दिख जाएंगी

पुरस्कार

मरणोपरांत:
·         काँग्रेशनल अंतरिक्ष पदक के सम्मान
·         नासा अंतरिक्ष उड़ान पदक
·         नासा विशिष्ट सेवा पदक

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