Monday 16 January 2017

दत्तक ग्रहण विनियम 2017

देश में एक नया क़ानून बनाया गया है. इस नए नियम-कानून के अनुसार, अब सौतेले माता-पिता अपने बच्चों को राष्ट्रीय दत्तक संस्था के जरिए गोद ले सकते हैं और उनके साथ अपने संबंध को क़ानूनी रूप दे सकते हैं. आपको बता दें कि ये नए नियम आगामी 16 जनवरी से प्रभावी होंगे. इस नियम की ख़ास बात ये है कि इनके तहत रिश्तेदार भी बच्चों को गोद ले पायेंगे.
केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (कारा) के सीईओ लेफ्टिनेंट कर्नल दीपक कुमार ने कहा, 'भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो सौतेले माता-पिता और सौतेले बच्चे के बीच वैधानिक संबंध की व्याख्या करता हो. सौतेले बच्चे का सौतेले माता या पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता. ठीक उसी प्रकार से एक बच्चा भी अपने सौतेले माता या पिता की उनकी वृद्धावस्था में देखभाल करने के लिए क़ानूनी रूप से बाध्य नहीं होता. इसी तरह की कमियों को दूर करने के उद्देश्य से इन नए नियमों को बनाया गया है. आपको बता दें कि कारा केंद्र सरकार के अधीन एक संस्था है, जो देश में सभी दत्तक प्रक्रियाओं की निगरानी और उनका नियमन करती है.

गौरतलब है कि पहले केवल अनाथ या छोड़ दिए गए बच्चे को ही गोद लिया जा सकता था, लेकिन अब सरकार ने इस परिभाषा को विस्तार दिया है. अब सरकार ने गोद दिए जा सकने वाले बच्चों लिए नियम बनाया है, जिसके तहत किसी संबंधी का बच्चा, पूर्व विवाह से पैदा हुआ बच्चा या जैविक माता-पिता द्वारा जिस बच्चे का संरक्षण छोड़ दिया गया हो, उन्हें भी शामिल किया गया है, जिसके चलते ऐसे बच्चों को भी अब गोद लिया जा सकता है. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि किसी संबंधी द्वारा गोद लेने के मामले में संभावित माता-पिता को बच्चे के असली माता-पिता से मंजूरी लेनी होगी. अगर असली माता-पिता जीवित नहीं हैं, तो बाल कल्याण समिति से इसकी इजाज़त लेनी होगी.
ये नियम किशोर न्याय अधिनियम 2015 से लिए गए हैं, जिसमें रिश्तेदार या संबंधी शब्द की व्याख्या चाचा या बुआ, मामा या मासी, दादा-दादी या नाना-नानी के रूप में की गई है.



रजिस्ट्रेशन होगा जरूरी: सौतेले मां या पिता के मामले में दंपती, जिसमें से एक बच्चे का बायलॉजिकल जन्मदाता, हो उसे चाइल्ड अडॉप्शन रिसोर्स इन्फर्मेशन ऐंड गाइडेंस सिस्टम में रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। गोद लेने के लिए दूसरे बायलॉजिकल पैरंट की जरूरत होगी और अडॉप्शन ऑर्डर लेने के लिए कोर्ट में ऐप्लिकेशन देना होगा। इसी तरह, किसी रिश्तेदार द्वारा अडॉप्शन के मामले में संभावित माता-पिता को बच्चे के बायलॉजिकल पैरंट्स से मंजूरी लेनी होगी। अगर वे जीवित नहीं हैं तो बाल कल्याण समिति से इजाजत लेनी होगी।

गोद लेने के लिए जैविक पैरेंट्स की मंजूरी जरूरी
सौतेले माता या पिता के मामले में दंपत्ति, जिसमें से एक बच्चे का जैविक जनक हो उसे बाल दत्तक संसाधन सूचना व मार्गदर्शन प्रणाली में पंजीयन करवाना होगा लेकिन गोद लेने के लिए दूसरे जैविक जनक की मंजूरी की जरूरत होगी और दत्तक आदेश प्राप्त करने के लिए अदालत में आवेदन देना होगा।
जैविक माता-पिता न होने पर बाल कल्याण समिति से लेनी होगी इजाजत
इसी तरह, किसी संबंधी द्वारा गोद लेने के मामले में संभावित माता-पिता को बच्चे के जैविक माता-पिता से मंजूरी लेनी होगी। यदि जैविक माता-पिता जीवित नहीं हैं तो बाल कल्याण समिति से इजाजत लेनी होगी। ये नियम किशोर न्याय अधिनियम 2015 से लिए गए हैं जिसमें ‘‘रिश्तेदार या संबंधी'' शब्द की व्याख्या चाचा या बुआ, मामा या मासी, दादा-दादी या नाना-नानी'' के रूप में की गई है। इन दो श्रेणियों में दत्तक प्रक्रिया को सरल बनाने के लिए गोद लेने वाले संभावित माता-पिता के लिए आयुसीमा भी खत्म कर दी गई है।
हिंदू कानून में हैं कई बंदिशें
हिंदू कानून में दत्तक ग्रहण, हिंदू दत्तक ग्रहण एवं देखभाल अधिनियम, 1956 के तहत आता है जिसमें कई तरह की बंदिशें हैं। इस कानून के तहत, गोद लेने वाला परिवार उस लिंग के बच्चे को गोद नहीं ले सकता जिस लिंग का उनका अपना बच्चा, पोता या परपोता है। विपरित लिंगी बच्चे को गोद लेने वाले संभावित माता-पिता की आयु बच्चे की उम्र से 21 साल अधिक होनी चाहिए।
पारिवारिक कानून विशेषज्ञ अनिल मल्होत्रा ने बताया कि अधिनियम में दत्तक ग्रहण प्रक्रिया पर अदालती मुहर लगने की कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन जब कोई व्यक्ति बच्चे को विदेश ले जाना चाहता है तो दूतावास अदालती आदेश पर जोर देता है।
बाकी समुदायों में बच्चों के केवल लालन-पालन का अधिकार
मुस्लिम, इसाई और पारसी समुदाय के लिए कोई दत्तक कानून नहीं है। इन समुदायों के गोद लेने के इच्छुक लोगों को गार्जियन ऐंड वार्ड्स एक्ट, 1890 के तहत अदालत का दरवाजा खटखटाना होता है। इस कानून के तहत बच्चे को केवल लालन पालन के लिए लिया जा सकता है। बालिग होने पर बच्चा सभी संबंधों को खत्म करने के लिए स्वतंत्र होता है। ऐसे बच्चे को वारिस बनने का कानूनी अधिकार भी नहीं होता।


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