Monday 20 February 2017

शान्ति स्वरूप भटनागर


सर शांति स्वरूप भटनागर,  (२१ फरवरी १८९४  १ जनवरी १९५५) जाने माने भारतीय वैज्ञानिक थे। इनका जन्म शाहपुर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था। इनके पिता परमेश्वरी सहाय भटनागर की मृत्यु तब हो गयी थी, जब ये केवल आठ महीने के ही थे।
जीवन परिचय
शान्ति स्वरूप भटनागर का जन्म 21 फ़रवरी1894 को शाहपुर (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। इनके पिता का नाम परमेश्वरी सहाय भटनागर था। इनका बचपन अपने ननिहाल में ही बीता। इनके नाना एक इंजीनियर थे, इसी कारण उनकी रुचि विज्ञान और अभियांत्रिकी में बढ़ गयी थी। इन्हें यांत्रिक खिलौने, इलेक्ट्रानिक बैटरियां और तारयुक्त टेलीफोन बनाने का शौक़ रहा। इन्हें अपने ननिहाल से कविता का शौक भी मिला और इनका उर्दु  एकांकी करामाती प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पाया था। शान्ति स्वरूप भटनागर ने यूनिवर्सिटी कॉलेजलंदन से 1921 में, विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। भारत लौटने के बाद, उन्हें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रोफ़ेसर के पद पर कार्य किया था।
शिक्षा
उनकी प्रारंभिक शिक्षा सिकंदराबाद के दयानंद एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल में हुई। सन 1911 में उन्होंने लाहौर के नव-स्थापित दयाल सिंह कॉलेज में दाखिला लिया। यहाँ पर वे सरस्वती स्टेज सोसाइटीके सक्रीय सदस्य बन गए। भटनागर ने यहाँ एक कलाकार के तौर पर अच्छी ख्याति अर्जित कर ली थी। उन्होंने उर्दू में करामातीनामक एक नाटक लिखा। इस नाटक के अंग्रेजी अनुवाद ने उन्हें सरस्वती स्टेज सोसाइटीका साल 1912 का सर्वश्रेष्ठ नाटकपुरस्कार और पदक दिलवाया। शांति स्वरुप भटनागर ने सन 1913 में पंजाब यूनिवर्सिटी से इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके पश्चात उन्होंने लाहौर के फॉरमैन क्रिस्चियन कॉलेज में दाखिला लिया जहाँ से उन्होंने सन 1916 में बी.एस.सी. और सन 1919 में एम.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
भारत में स्नातकोत्तर डिग्री पूर्ण करने के उपरांत, शोध फ़ैलोशिप पर, ये इंगलैंड गये। इन्होंने  युनिवर्सिटी  कालेज, लंदन से १९२१ में, रसायन शास्त्र के प्रोफ़ैसर फ़्रेड्रिक जी डोन्नान की देख रेख में, विज्ञान में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की।  भारत लौटने के बाद, उन्हें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रोफ़ैसर पद हेतु आमंत्रण मिला। सन १९४१ में ब्रिटिश सरकार द्वारा इनकी शोध के लिये, इन्हें नाइटहुड से सम्मानित किया गया। १८ मार्च १९४३ को इन्हें फ़ैलो आफ़ रायल सोसायटी चुना गया। इनके शोध विषय में एमल्ज़न, कोलाय्ड्स और औद्योगिक रसायन शास्त्र थे। परन्तु इनके मूल योगदान चुम्बकीय-रासायनिकी के क्षेत्र में थे। इन्होंने चुम्बकत्व को रासायनिक क्रियाओं को अधिक जानने के लिये औजार के रूप में प्रयोग किया था। इन्होंने प्रो॰ आर.एन.माथुर के साथ भटनागर-माथुर इन्टरफ़ेयरेन्स संतुलन का प्रतिपादन किया था, जिसे बाद में एक ब्रिटिश कम्पनी द्वारा उत्पादन  में प्रयोग भी किया गया। इन्होंने एक सुन्दर कुलगीत नामक विश्वविद्यालय गीत की रचना भी की थी। इसका प्रयोग विश्वविद्यालय में कार्यक्रमों के पहले होता आया है।
भारत के प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू वैज्ञानिक प्रसार के प्रबल समर्थक थे। १९४७ में,  भारतीय स्वतंत्रता के उपरांत, वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की स्थापना, श्री भटनागर की अध्यक्षता में की गयी। इन्हें सी.एस.आई.आर का प्रथम महा-निदेशक बनाया गया। इन्हें शोध प्रयोगशालाओं का जनक कहा जाता है व भारत में अनेकों बड़ी रासायनिक प्रयोगशालाओं के स्थापन हेतु स्मरण किया जाता है। इन्होंने भारत में कुल बारह राष्ट्रीय प्रयोगशालाएं स्थापित कीं, जिनमें प्रमुख इस प्रकार से हैं:
1.   केन्द्रीय खाद्य प्रोसैसिंग प्रौद्योगिकी संस्थान, मैसूर,
2.   राष्ट्रीय रासायनिकी प्रयोगशाला, पुणे,
3.   राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला, नई दिल्ली,
4.   राष्ट्रीय मैटलर्जी प्रयोगशाला, जमशेदपुर,
5.   केन्द्रीय ईंधन संस्थान, धनबाद, इत्यादि।
पुरस्कार
शान्ति स्वरूप भटनागर को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी क्षेत्र में सन 1954 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
निधन

शान्ति स्वरूप भटनागर का निधन 1 जनवरी 1955 में हुआ था। शान्ति स्वरूप भटनागर की मृत्यु के बाद सी. एस. आई. आर. (CSIR) ने कुशल वैज्ञानिकों के लिए शान्ति स्वरूप भटनागर पुरस्कार की घोषणा की थी

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