Saturday 4 February 2017

श्रीलंका का स्वतंत्रता संग्राम



श्रीलंका का स्वतंत्रता संग्राम ब्रितानी साम्राज्य से आजाद होने तथा स्वशासन स्थापित करने के लिये लड़ा गया था। यह शान्तिपूर्ण राजनीतिक आन्दोलन था। यह आन्दोलन बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दिनों में शुरू हुआ। इसका नेतृत्व शिक्षित मध्यम वर्ग ने किया और अन्ततः 4 फरवरी, 1948 को उस समय सिलोन कहलाने वाला देश श्रीलंका आधिकारिक रूप से ब्रिटिश कॉमनवेल्थ का एक स्वतंत्र उपनिवेश बन गया.२२ मई १९७२ को श्रीलंका गणतंत्र (रिपब्लिक) बना।
दुनियाभर में सौ से भी ज्यादा देश कभी न कभी किसी औपनिवेशिक साम्राज्य के अधीन रह चुके हैं. अकेले ब्रिटिश सत्ता ने करीब करीब आधी दुनिया पर राज किया. 19वीं सदी में श्रीलंका ने भी ब्रिटिश शासन से आजादी पाई. 1951 में डॉन स्टीफेन भंडारनाइके ने वहां श्रीलंका फ्रीडम पार्टी की स्थापना की. प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए 1952 में उनका निधन हो गया. 1947 में जब लॉर्ड माउंटबेटन ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के आधार पर भारत का विभाजन किया, उसी दौरान ब्रिटिश भारत में से सिलोन और बर्मा को भी अलग किया गया. 1972 तक श्रीलंका का नाम सिलोन ही था.
प्राचीन काल से ही श्रीलंका पर शाही सिंहल वंश का शासन रहा. 16वीं सदी में यूरोपीय शक्तियों ने श्रीलंका में व्यापार के बल पर सत्ता जमाई. इनमें पुर्तगाल प्रमुख था जिसने कोलंबो के पास अपना दुर्ग भी बना डाला और सिलोन से बहुत सारी चीजों का निर्यात करने लगे. स्थानीय लोगों ने उनसे छुटकारा पाने के लिए 1630 में डच लोगों की मदद से पुर्तगालियों को भगा दिया. लेकिन सत्ता में आने के बाद डच लोगों ने वहां के लोगों पर टैक्स और बढ़ा दिया. इसी समय अंग्रेजों ने यहां कमाई के मौके का फायदा उठाने का निर्णय किया. 1818 तक अंग्रेजों ने श्रीलंका पर अपना राज स्थापित कर लिया.
दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति को बाद 1948 में जाकर श्रीलंका को अंग्रेजों के राज से आजादी मिली. आजादी के समय तक चाय, रबड़ और नारियल इस प्रायद्वीपीय देश से निर्यात किए जाने वाले तीन प्रमुख उत्पाद थे. देश की कुल विदेशी मुद्रा का करीब 90 फासदी उस समय इन्हीं तीनों चीजों से आता था. श्रीलंका की तेजी से बढ़ती जनसंख्या और सामान्य उपभोक्ता सामानों के आसान आयात की वजह से यह बढ़त जारी न रह सकी. इससे देश कई आर्थिक समस्याओं से घिर गया. साथ ही राजनीतिक उठापटक की वजह से सालों वहां जातीय संघर्ष होते रहे.

पिछले पच्चीस सालों से श्रीलंका की सेना ने तमिल विद्रोहियों के खिलाफ संघर्ष किया. लिट्टे के विद्रोही श्रीलंका में तमिल अल्पसंख्यकों के लिए एक अलग देश बनाना चाहते हैं. मई 2009 में कोलंबो की सरकार ने लिट्टे पर विजय पाई और गृहयुद्ध खत्म हुआ. पिछले साल हुए प्रांतीय परिषद के चुनावों में देश की प्रमुख तमिल पार्टी, तमिल नेशनल एलायंस ने सत्तारूढ़ गठबंधन यूपीएफए को बुरी तरह हरा कर सत्ता से बाहर करने में कामयाबी पाई.

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